उपेन्द्र डनसेना रायगढ़ ।
रायगढ़। जिले के सरकारी प्रायमरी से लेकर हायर सेकंडरी स्कूल में सेटअप के हिसाब से शिक्षकों की कमी है । जिले में साल-दर-साल स्कूलों की संख्या बढऩे के साथ प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या बढ़ी है, लेकिन शिक्षकों की कमी छात्रों के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा में बाधा बनकर खड़ी है ।
जानकारी केे मुताबिक स्कूल खुलते ही छात्र-छात्राओं को अब पढ़ाई के लिए पर्याप्त शिक्षकों की व्यवस्था नही होनें से खुद छात्र-छात्राएं सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करने में लगे हैं । इसी समस्या को लेकर आज तमनार ब्लाक के ग्राम महलोई की सरकारी स्कुल में शिक्षकों की कमी तथा बीते 8 साल से स्कूल का कोई सुधार नही होनें को लेकर खुद दो दर्जन से भी अधिक छात्राओं ने स्कूल का बहिस्कार करते हुए सैकड़ो किलोमीटर दूर से रायगढ़ जिला मुख्यालय पहुंचे और एक मांग पत्र फिर से अतिरिक्त कलेक्टर को सौंपा । सरकारी स्कूल में पढऩे वाले छात्र-छात्राओं का यह पहला प्रदर्शन देखने को मिला है । जब तमनार ब्लाक के ग्राम महलोई से रायगढ़ जिला मुख्यालय तक ये पहुंचे और बकायदा अपनी समस्याओं से अधिकारियों को अवगत कराया । चूंकि लंबे समय से यहां पढऩे वाले छात्र-छात्राएं अपनी पढ़ाई सही ढंग से नही होनें के चलते परेशान हैं और कई बार इन लोगों ने अधिकारियों को समस्याओं को दूर करने के लिए भी अवगत कराया था, लेकिन फिर से नया शिक्षा सत्र शुरू हो गया और समस्या जस की तस है ।
पालक ने भी इस मांग को जायज ठहराया और कहा कि गांव में पढऩे वाले बच्चों का भविष्य खतरे में है और ऐसे में अधिकारियों को पहल करनी चाहिए। परेशान छात्र-छात्राओं का कहना था कि यहां पर्याप्त शिक्षकों की व्यवस्था नही है और शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए विभाग पहल भी नही कर रहा है। इतना ही नही स्कूल भवन का उन्नयन हायर सेकेण्डरी के रूप में सन् 2011 में स्थानीय व्यवस्था के तहत हुआ था पर हाई स्कूल घोषित होनें के बाद भी सरकारी स्तर पर कोई बडी पहल नही की गई जिसके चलते छात्र-छात्राएं अपने भविष्य को लेकर परेशान है और वे आज यहां पहुंचे हैं। अतिरिक्त कलेक्टर का कहना था कि छात्र-छात्राओं की मांग पत्र के आधार पर शिक्षा विभाग को अवगत कराया गया है और जल्द ही इसे दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
शिक्षकों की कमी की ओर किसी का ध्यान नहीं, बस योजनाएं बनती जा रही हैं
शिक्षकों की कमी से न केवल प्राथमिक, माध्यमिक स्कूली शिक्षा को खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है, बल्कि उच्च शिक्षा यानी विश्वविद्यालय स्तर पर भी शिक्षकों की कमी देखी जा सकती है । यह स्थिति स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय से लेकर शिक्षक−प्रशिक्षण संस्थानों में भी यथावत् । प्रदेश भर में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी से स्कूली शिक्षा लगातार जूझ रही है। इस प्रकार की स्थिति से उबरने के लिए कुछ राज्यों में तदर्थ शिक्षकों, निविदारत शिक्षकों, शिक्षा मित्रों आदि की नियुक्ति की गई है। इन निविदारत शिक्षकों के कंधे पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है । शैक्षिक रिपोर्ट लगातार आगाह कर रही हैं कि स्कूली स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। यह सरकारी और गैर सरकारी दोनों की स्तरों की संस्थाएं हमें ताकीद कर रही हैं। इस दबाव में सरकारें तरह तरह के नवाचार भी कर रही हैं। कभी मिशन बुनियाद, कभी ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड, कभी सर्व शिक्षा अभियान आदि। लेकिन इन अभियानों से हमारे मकसद क्यों पूरे नहीं हो पा रहे हैं, हमें सोचना होगा। हमें यह भी मंथन करने की आवश्यकता है कि सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी शिक्षा में गुणवत्ता को सुनिश्चित क्यों नहीं कर पा रहे हैं। क्या कहीं प्लानिंग में कोई खामी रह रही है या फिर कार्यान्वयन में कोई अड़चन आ रही है। इसे समझना होगा। सरकार को रणनीति बनाकर स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की आवश्यकता है। न केवल नीति के स्तर पर बल्कि ज़मीनी हक़ीकतों को ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनानी होंगी।