जेल में 6 साल से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी का हुआ इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन ,कलेक्टर अपनी गाड़ी में बैठाकर खुशी को केंद्रीय जेल से लेकर गये स्कूल |

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 कमल दुबे [Edited By : शशिकांत साहू]

बिलासपुर । जब एक पिता अपनी बेटी को खुद से विदा करता है तब दोनों तरफ से सिर्फ आंसू ही बहते हैं । आज बिलासपुर केंद्रीय जेल में ऐसा ही नजारा देखने को मिला । जेल में बंद एक सजायफ्ता कैदी अपनी 6 साल की बेटी खुशी( बदला हुआ नाम) से लिपटकर खूब रोया । वजह बेहद खास थी । आज से उसकी बेटी जेल की सलाखों के बजाय बड़े स्कूल के हॉस्टल में रहने जा रही थी । करीब एक माह पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर डॉ संजय अलंग की नजर महिला कैदियों के साथ बैठी खुशी पर गयी थी । तभी वे उससे वादा करके आये थे कि उसका दाखिला किसी बड़े स्कूल में करायेंगे । आज कलेक्टर कलेक्टर डॉ संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से स्कूल तक खुद छोड़ने गये । कार से उतरकर खुशी एकटक स्कूल को देखती रही । खुशी कलेक्टर की उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गयी । एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिये वह स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गयी थी ।

 आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश थी । क्योंकि जेल की सलाखों में बेगुनाही की सजा काट रही खुशी आज आजाद हो रही थी । कलेक्टर की पहल पर शहर के जैन इंटरनेशनल स्कूल ने खुशी को अपने स्कूल में एडमिशन दिया । वह स्कूल के हॉस्टल में ही रहेगी । खुशी के लिये विशेष केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है । स्कूल संचालक श्री अशोक अग्रवाल ने कहा है कि खुशी की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा स्कूल प्रबंधन ही उठायेगा । खुशी को स्कूल छोड़ने जेल अधीक्षक श्री एस एस तिग्गा भी गये । 

 बता दें कि खुशी के पिता केंद्रीय जेल बिलासपुर में एक अपराध में सजायफ्ता कैदी हैं । पांच साल की सजा काट ली है, पांच साल और जेल में रहना है । खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गयी थी । पालन पोषण के लिये घर में कोई नहीं था । इसलिये उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था । जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला कैदियों को दे दिया गया । वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी । लेकिन खुशी जेल की आवोहवा से आजाद होना चाहती थी । संयोग से एक दिन कलेक्टर जेल का निरीक्षण करने पहुंचे।  उन्होंने महिला बैरक में देखा कि महिला कैदियों के साथ एक छोटी सी बच्ची बैठी हुयी है । बच्ची से पूछने पर उसने बताया कि जेल से बाहर आना चाहती है । किसी बड़े स्कूल में पढ़ने का उसका मन है । बच्ची की बात कलेक्टर को भावुक कर गयी । उन्होंने तुरंत शहर के स्कूल संचालकों से बात की और जैन इंटरनेशनल स्कूल के संचालक खुशी को एडमिशन देने को तैयार हो गये । कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों को भी जेल से बाहर स्कूल में एडमिशन की प्रक्रिया शुरु कर दी गयी है ।