गांव में “बिजली” तो आई नहीं ,”बिल” जरूर थमा दिए गए | पीड़ित ग्रामीणों को दूर-दूर तक ना तो बिजली विभाग का “दफ्तर” नजर आया और ना ही कोई “कर्मचारी” | “कलेक्टर” की “शरण” में गांव |  

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बलरामपुर | छत्तीसगढ़ के कई गांव में आजादी के बाद से लेकर अब तक बिजली का इंतजार हो रहा है , कई गांव ऐसे है जहां खंभे लग चुके है लेकिन बगैर तार लगे बिजली दौड़ रही है | दिलचस्प बात यह है कि ये गांव बिजली से “रौशन” तो नहीं हुए ,अलबत्ता बिजली का “बिल” ग्रामीणों के हाथो में थमा दिया गया , है ना कमाल की बात | ग्रामीण अचंभे में है ,उनकी दलील है कि जब घरो में बिजली आई ही नहीं तो “बिल” किस बात का ? ग्रामीणों ने इस सवाल का जवाब जानने के लिए गांव में बिजली दफ्तर खोजा ,दूर -दूर तक ना तो बिजली दफ्तर नजर आया और ना ही बिजली विभाग कोई कर्मचारी | पीड़ितों ने आस पास के कई पढ़े लिखे लोगो को बिजली के खंभे के पास ले-जाकर यह देखने के लिए कहा कि कही “करंट” तो नहीं दौड़ रहा है | पता पड़ा कि जब खंभो में तार ही नहीं लगे तो आखिर कैसे ग्रामीणों के घरो में बिजली की सप्लाई हो गई | और हां जब मीटर ही नहीं लगा तो कैसे बिजली विभाग के कर्मचारियों को मीटर की रीडिंग मिल गई और उन्होंने भुगतान के लिए बिल थमा दिया ? परेशान ग्रामीण कभी “सरपंच” के चक्कर काट रह है ,तो कभी पंचायत के “बाबू” के | जब कही भी राहत नहीं मिली तो उन्होंने अब “कलेक्टर” कार्यालय का दरवाजा खटखटाया है |  घटना बलरामपुर जिले “सानावाल” गांव की है |  

सरकार की “सौभाग्य योजना” के तहत गांव- गांव में बिजली  मुहैया कराने की कवायद में विद्दुत विभाग जुटा हुआ है | इस कड़ी में कई ग्रामीण इलाको में विद्द्युतीकरण में तेजी आई है | लेकिन कई ऐसे गांव है ,जहां इस योजना के तहत सिर्फ ‘खंभे” ही खड़े हो पाए है | खाली खड़े “खंभो” में महीनो से ना तो तार लगा है और ना ही ट्रांसफार्मर समेत अन्य उपकरण | इन खंभो को देखकर ग्रामीणों को अपने घरो में “रौशनी” पहुंचने की उम्मीद जगी है ,लेकिन बिजली आने से पहले ही उन्हें “करंट” लगा है | बगैर बिजली का “उपयोग” किए “घरो” में  बिजली का “बिल” पहुंच गया है | बिजली के “बिलो” को देखकर सनावाल गांव के लोग कभी आंसू बहा रहे है तो कभी माथा पीट रहे है |  कई जगह गुहार लगाने के बाद जब समस्या हल नहीं हुई तो पीड़ित ग्रामीणों ने जिले के कलेक्टर के कार्यालय पहुंचकर अपनी आपबीती सुनाई है |  कलेक्टर के दफ्तर पहुंचे राम ,जीवन ,बसंत ,लोकेशवर और दीनाराम ने लिखित शिकायत में कहा है कि उनके गांव में बच्चे अभी भी अंधेरे में “लैंप” जलाकर पढ़ाई करते हैं | बिजली के खंभो में तार भी नहीं है | ये खंभे गांव के बाहरी छोर में खड़े है ,लेकिन गांव में बिजली के “बिल” तमाम घरो में पंहुचा दिए गए है | पीड़ितों ने बताया कि 50 रुपए से लेकर 500 रुपए के बिलो में बाकायदा बिजली की “खपत” भी दर्शाई गई है | कलेक्टर कार्यालय के बाबुओ ने जब बिजली के “बिलो” को देखा ,तो वे भी हैरत में पड़ गए | तमाम पीड़ितों से “कलेक्टर साहब” ने “रूबरू” होते हुए उन्हें सांत्वना दी | जिला कलेक्टर संजीव कुमार झा ने कहा कि अगर ऐसा कुछ हुआ है तो इसकी जांच की जाएगी |  ग्रामीणों  ने कलेक्टर को बताया कि दो सौ से अधिक घरो में “बत्ती” गुल है ,लेकिन “बिल” भुगतान के लिए पंचायत “दबाव” बना रही है |   

गौरतलब है कि इस इलाके में बगैर बिजली सप्लाई किए “बिल” थमा देने का कारनामा पहली बार नहीं हुआ है | इससे पहले इसी साल फरवरी माह में सलावान गांव से सटे “झालपी पारा”  गांव में भी ऐसा ही वाकया देखने को मिला था | इस गांव में मीटर लगने के दो महीने बाद तक बिजली कनेक्शन घरो में नहीं पंहुचा था | मीटरो में बिना बिजली आपूर्ति के ग्रामीणों को 500 से लेकर 600 रुपये तक का बिजली “बिल” थमा दिया गया था | कोहराम मचने के बाद आखिरकर विद्दुत विभाग को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सभी “बिल” रद्द किए थे |