कलेक्टर का आदेश बना कोयला तस्करो के लिए वरदान

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गेंदलाल शुक्ला

कोरबा। कलेक्टर बिलासपुर का एक आदेश कोयला तस्करों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इस आदेश की आड़ में प्रतिमाह करोड़ों रुपयों की कोयला की चोरी और तस्करी हो रही है। एस ई सी एल प्रबन्धन भी मूक दर्शक बना बैठा है। सूत्रों के अनुसार कोरबा जिले की कोयला खदानों से विभिन्न उद्योगों को कोयला का लिंकेज दिया गया है। उद्योगों का कोयला सड़क मार्ग से परिवहन किया जाता है। परिवहन के दौरान ही बड़ी मात्रा में कोयला की अफरा-तफरी की जाती है।

जानकारी के अनुसार कोयला खदानों से तो अच्छी क्वालिटी का कोयला ट्रकों में दिया जाता है, लेकिन बीच रास्ते में इस कोयले को बदल दिया जाता है। अच्छे कोयले की जगह कोयले का डस्ट और ओवरबर्डन के पत्थर उद्योगों को भेज दिए जाते हैं। कोयला परिवहन से जुड़े सूत्रों पर यकीन करें तो कोयला चोरों और तस्करों को बिलासपुर कलेक्टर के एक आदेश से इस गोरखधंधे को अंजाम देने का अवसर मिला हुआ है। दरअसल कलेक्टर ने बिलासपुर जिले में 83 लोगों को कोल डिपो का लाइसेंस दे रखा है। यह कोल डिपो ही कोयला अफरा-तफरी का अड्डा बने हुए हैं। यही अच्छा कोयला खाली कर उसकी जगह कोयले का डस्ट और पत्थर ट्रकों में भरे जाते हैं और उद्योगों को भेजे जाते हैं। मजे की बात यह है कि पिछले 2 वर्षों से कोरबा जिले की कोयला खदानों से कोयले की खुली नीलामी नहीं की गई है। इसके बावजूद बिलासपुर जिले की कोल डिपो की जांच करने पर बड़ी मात्रा में कोयला मिलता रहा है। यह कोयला भी ई 11 ग्रेड का होता है जो केवल कोरबा की कोयला खदानों में मिलता है।

लेकिन अव्वल तो कोयला डिपो की पुख्ता जांच नहीं होती, दूसरे जांच भी होती है तो कोयले की ग्रेड को लेकर कोई सवाल खड़ा नहीं होता। उधर एसईसीएल प्रबंधन भी इस मामले में चुप्पी साधे रहता है। वह कलेक्टर से इस बात की चर्चा ही नहीं करता कि जब एसईसीएल कोयले की नीलामी ही नहीं कर रहा है तो किसी भी व्यक्ति को कोल डिपो का लाइसेंस क्यों दिया गया है। इस तरह कलेक्टर का एक आदेश जो अनेक लोगों को कोल डिपो संचालन की अनुमति देता है वह कोयला चोरी और तस्करी का माध्यम बन गया है।