पत्थलगांव \ प्रेम प्रकाश शर्मा \
मां दुर्गा की आराधना का पर्व है नवरात्र उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। जशपुर जिले के पत्थलगांव में दर्जन भर स्थान पर श्रद्धा और विश्वास के साथ मां दुर्गा की स्थापना कर पूजा अर्चना की जा रही है. यंहा रायगढ़ रोड़ स्थित दुर्गा पूजा समिति में बनारस के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य एवं ज्योतिष के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को लेकर राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डा. शत्रुघ्न त्रिपाठी प्रति दिन भक्तों को धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व की ज्ञानवर्धक बातों की भी शिक्षा दे रहे हैं. डा. त्रिपाठी ने बताया कि मां के नौ रूपों की भक्ति से हर मनोकामना पूरी होती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माता दुर्गा नौ दिनों के लिए मां दुर्गा अपने भक्तों के दुख दूर करने पृथ्वी लोक में आती हैं, इन दिनों में यदि विधि विधान से माता की आराधना की जाए, तो वह प्रसन्न होंगी और सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगी।
शारदीय नवरात्र में नौ दिनों में मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि स्वरूप का दर्शन-पूजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि नौ शक्तियों के मिलन को नवरात्र कहते हैं। डॉ. त्रिपाठी के मुताबिक नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि के लिए उपवास, संयम, नियम, भजन,पूजन और योग साधना करते हैं। नौ दिनों तक दुर्गासप्तशती का पाठ, हवन और कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सृष्टि के साथ ही माँ भगवती की अवधारणा के शाश्वत सत्य को पुराणों ने नेति नेति कह कर पुकारा है। जगतजननी माँ दुर्गा नव रूप में दश विद्या के विकराल स्वरूप में समस्त भूतों की रक्षा करती है। इसलिए आदि शंकराचार्य भगवान कहते हैं कि भगवती से विवाह करके भगवान शिव भी अत्यधिक लोकप्रिय हो गये – ” भवानी तवत्पणिग्रहण परिपाटी फलमिदम” कलौ चण्डीविनायकौ के मान्यता के आधार पर नव देवियों एवम दश महाविद्यायों की आराधना हमें न केवल मनोकामना पूर्ण करती हैं अपितु ये आपद से रक्षा तथा विरुद्ध एवम नकारात्मक शक्तियों के संहारक भी हैं।
बनारस के प्रमुख ज्योतिष विद डा. शत्रुघ्न त्रिपाठी ने मध्यप्रदेश के दतिया स्थित मां पीतांबरा अर्थात बगलामुखी का स्वरूप पर विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि मां बगलामुखी जिनके नेत्र करुणा से भरे हुए हैं । वे अपने भक्तों और साधकों की शत्रुओं से रक्षा कर उसे हर तरह से संपन्न बनाती हैं इसीलिए माई को राज राजेश्वरी भी कहा गया है। जिस तरह हर देवी देवता को कुछ खास द्रव्य और रंग पसंद होते हैं उसी तरह माई को पीला रंग पसंद है। उनकी पूजा, साधना और उपासना में पीले वस्त्रों, द्रव्यों का विशेष महत्व है। बताते हैं कि वर्ष 1962 के भारत चीन युद्ध के समय यहां विशेष अनुष्ठान करवाए जाने के बाद चीन घबराकर रण क्षेत्र से वापस लौट गया था. जन मान्यता है कि माई के भक्त यहां दर्शन के बाद नई ऊर्जा से जीवन जीते हैं,लक्ष्य में कामयाब होते हैं।उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में दतिया स्थित श्री पीतांबरा पीठ स्थित बगलामुखी मंदिर को विशेष सिद्ध पीठों का दर्जा प्राप्त है। दतिया में वनखंडी आश्रम में ब्रह्मलीन हो चुके राष्ट्रगुरु अनंत विभूषित श्रीस्वामीजी महाराज ने माई की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी.
कहते हैं, पीतांबरा माई को पीला रंग पसंद है .इसीलिए उनकी साधना में पीले रंग के वस्त्रों और द्रव्यों का विशेष महत्व है। माई की साधना पीत परिधानों में की जाती है। माई को अर्पित किए जाने वाले द्रव्य भी पीले रंग के ही होते हैं। विशेष प्रयोजन में हवन में पीली सरसों की आहुतियां दी जाती हैं और माई का जाप भी कुछ साधक हरिद्रा अर्थात पीली हल्दी की बनी माला से करते हैं। ज्यादातर साधक जाप के लिए कमलगटा से बनी माला का उपयोग करते हैं.माई का मंत्र 36 अक्षरों का है जो नियम, संयम, श्रद्धा और विश्वास से जाप करने वाले साधक को मनोवांछित फल देता है। आचार्यों के अनुसार माई के मंत्र का सवा लाख जाप करने पर सिद्ध हो जाता है। पुरश्चरण सवा लाख का बताया गया है। आचार्यों के अनुसार माई शत्रुओं का नाश करती हैं इसका आशय है कि माई साधक को भौतिक, दैहिक और दैविक संताप देने वाले शत्रुओं से रक्षा करती हैं। माई का प्रकटन सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर से हुआ था। भगवान विष्णु द्वारा किए गए आह्वान पर माई ने प्रकट होकर भयंकर वातक्षोभ से पृथ्वी की रक्षा की थी। भगवान विष्णु पीतांबरा माई के प्रथम उपासक माने जाते हैं।यहां मंदिर परिसर में मां धूमावती की प्रतिमा पर भजिए और कचौरी का प्रसाद चढा़ने की परम्परा है |