रघुनंदन पंडा /
भिलाई / असंतुलित पर्यावरण और आधुनिक जीवन शैली ने न सिर्फ वातावरण को दूषित किया है बल्कि हरियाली और उसके साथ पक्षियों को भी नष्ट होने के कगार तक पहुँचा दिया है यही नही , हमारी उदासीनता ने पानी को पाताल की गहराई तक समेट दिया है । इस कारण अब न कोयल की कुक सुनाई देती है और न गौरैय्या की ची- ची । यहां तक कि अतिथि आगमन की सूचना देने वाले कौए की कांव कांव भी अब सुनाई नही देती है । पक्षियों की आवाज कभी कानों में रस घोलते थे लेकिन उनकी जगह अब मोटर – गाड़ियों की कर्कश ध्वनि ने ले ली है । यहाँ तक कि बाग – बगीचों ओर हरियाली वाले क्षेत्रों में भी अब पछियों की आवाज दूभर हो गयी है । गर्मी में इन दिनों पारा 43 डिग्री पार कर चुका है ।
ऐसे में इन सबके बीच थोड़ी राहत की बात यह है कि छत्तीसगढ़ के इस्पात नगरी भिलाई में पछियों को बचाने कुछ युवा सगठन के सदस्य अच्छा काम कर रहे है । हर साल गर्मी आते ही पछियों को पानी पिलाने इनके द्वारा निःशुल्क सकोरे बाटे जाते है , यही नही जगह – जगह सकोरे रखे जाते है । यह युवा सगठन इस विचार से शहर के कुछ युवा पिछले कुछ सालों से यह कार्य करने लगे है ।
इन युवा संगठन के द्वारा इस भीषण गर्मी में भिलाई के चौक – चौराहों में लगभग 1200 से ऊपर मिट्टी के सकोरे व इस साल पछियों का दाना भी राहगीरों को वितरित किया । साथ ही साथ निःशुल्क सकोरे बाटने के साथ ही पहले उन राहगीरों को चिलचिलाती गर्मी में पानी व शरबत पिलाकर कंठ को तर किया । ताकि वे राहगीर उन बेजुबान पछियों व पशुओं की तेज गर्मी में भूख व प्यास की पीड़ा को समझ सके और इन सकोरे का सही उपयोग कर सके |