छत्तीसगढ़ में लगभग ढाई हजार “गुलामों” को दासता से “मुक्ति” का इंतजार | वर्तमान और पूर्व नौकरशाहों के सरकारी और निजी “बंगले” और “फार्महाउस” में “बेगारी” से त्रस्त कर्मी |

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रायपुर / छत्तीसगढ़ में “कांग्रेस राज” में  “गुलामों” की रिहाई को लेकर कोई कार्य योजना है , या नहीं ? इसे लेकर लगभग ढाई हजार कर्मचारियों के दस हजार से भी ज्यादा परिजन यह सवाल कर रहे है | ये सभी गुलाम  नौकरशाहों के सरकारी और निजी बंगलो के अलावा  उनके फार्महाउस और नाते रिश्तेदारों के यहां सालों से “बेगारी” कर रहे है | जबकि उनका वेतन “सरकारी खजाने” से जारी होता है |  कार्यस्थल में कई कर्मचारियों से तो  “जानवरों” की तरह सलूक होता है | कभी “साहब” तो कभी “मेमसाहब” , कभी “बच्चे” तो कभी “पालतू कुत्ते” की भी उन्हें  रोजाना फटकार सहना होता है | “गुलामों” को ना तो कोई सरकारी सुविधा मिलती है और ना ही “संरक्षण” | “गृहकार्य” से इंकार करने पर इन  “गुलामों” को नौकरी से ही “बेदखल” करने की धमकी दी जाती है | इसके चलते मजबूरीवश वो इस दासता को स्वीकार कर रहे है |      

छत्तीसगढ़ के नए राज्य के रूप में गठित हुए पूरे 19 बरस बीत गए | लेकिन यहां के सैड़कों बाशिंदो को नौकरशाहों की गुलामी से मुक्ति नहीं मिली है | राज्य के लगभग 478 बड़े नौकरशाहों के यहां अभी भी दो हजार से ज्यादा कर्मी निजी सेवा में तैनात है | सबसे गंभीर बात यह है कि इन सभी कर्मचारियों का वेतन सरकारी तिजोरी से आहरित होता है | इसमें सर्वाधिक कर्मचारी आईएएस , आईएफएस और कुछ आईपीएस अधिकारियों के यहां भी तैनात है | मुफ्त में मिले गुलामों को कोई भी अफसर रिहा नहीं करना चाहता है | यहां तक की सालों पहले रिटायर हो चुके अफसरों ने अभी भी सरकारी कर्मचारियों को अपने बंगले और फार्महाउस में तैनात रखा है | इन कर्मचारियों का वेतन उनके मूल विभाग से जारी होता है | कर्मचारियों ने कई-कई सालों से अपने मूल विभाग का रुख तक नहीं किया है | बावजूद इसके बगैर जांच पड़ताल उनका वेतन आहरित हो रहा है | “कार्यरत और सेवानिवृत” दोनों ही किस्म के अफसरों के सरकारी और निजी आवासों के अलावा उनके फार्महाउस में बड़ी तादाद में सरकारी कर्मचारियों की तैनाती की गई है | किसी के यहां लगभग आधा दर्जन तो कही दर्जनभर से ज्यादा | इनमे कोई नियमित कर्मचारी है तो कोई दैनिक वेतन भोगी और संविदा नियुक्ति वाला | इस “सरकारी बेगारी ” से राज्य के खजाने में हर माह लाखों का वित्तीय भार पड़ रहा है | हैरत करने वाली बात यह भी है कि “बेगारी ” करने से इंकार करने वाले कर्मियों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने की धमकी दी जाती है | बेचारे कर्मचारी “पापी पेट” का सवाल कहकर गुलामी की दासता भोगने को विवश है |       

छत्तीसगढ़ में “सरकारी बेगारी” की एक और घटना सामने आई है | पूर्व ACS डी.एस. मिश्रा के बंगले में दो कर्मचारियों की तैनाती सिर्फ घर के निजी कामकाज के लिए की गई है | हालांकि उनके बंगले में लगभग आधा दर्जन कर्मचारी तैनात है | इनमे से मात्र “दो” के मूल विभाग का पता पड़ पाया है | हाल ही में न्यूज टुडे छत्तीसगढ़ ने खुलासा किया था कि पूर्व ACS एम.के. राउत के बंगले में कई सालों से किस तरह से PMGSY के कर्मचारी चतुर सिंह यादव से “बेगारी” कराई जा रही है | इस कर्मी ने कभी भी अपने मूल विभाग में काम ही नहीं किया | जबकि PMGSY से हर माह उसका वेतन आहरित होता था | यही हाल दर्जनों ऐसे अफसरों का है जो सालों पहले “रिटायर” हो चुके है | 

छत्तीसगढ़ में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से “बेगारी ” कराने की सरकारी परंपरा काफी समृद्ध हो चुकी है | अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी हो , या फिर राज्य सेवा के | “क्लास वन और क्लास टू ” श्रेणी के ज्यादातर अफसरों के यहां निजी कार्यों के लिए “सरकारी गुलामों” की फ़ौज सालों से अपनी सेवाएं दे रही है | मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से इन “गुलामों ” ने अपील की है कि उन्हें अफसरों के बंगले और फार्महाउस से मुक्ति दिलाएं | उनकी यह भी दलील है कि वे अपने मूल  लौटकर “सरकारी सेवा” करना चाहते है | फ़िलहाल “सरकार” इस ओर कब “गौर” फरमाएंगे यह कहना मुश्किल है |