गेंदलाल शुक्ला |
कोरबा । ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ़ कोल एक्जिक्यूटिव्स के संयोजक पी. के. सिंह राठौर ने कोयला कर्मचारियों से राष्ट्रीय हित और श्रमिक हित में हड़ताल का सहारा नहीं लेने की अपील की है । उन्होने एक बयान में कहा है कि आप जानते हैं कि केंद्रीय श्रमिक संघों ने कोयला खानों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मुद्दे पर हड़ताल का आह्वान किया है । मैं सभी श्रमिकों और कोयला कर्मचारियों से अपील करना चाहता हूं कि वे इन नेताओं द्वारा दिए गए भावनात्मक आह्वान के साथ न चलें । आप जानते हैं कि हमारे देश में कोयले की कमी है और हमें 200 मिलियन टन से अधिक की मांग पूरा करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर कोयला आयात करना पड़ता है । हम आत्मनिर्भर होना चाहते हैं और आयात को शून्य तक कम करना चाहते हैं। इसके लिए हमें अपने देश में कोयले का उत्पादन करने की आवश्यकता है । कुछ कोयला खदानें खोली जाएंगी और कोयला खनन क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ-साथ नई नौकरियां पैदा की जाएंगी । मैं सभी कोयला कर्मचारियों से अपील करता हूं कि वे राष्ट्रीय हित और श्रमिक हित में हड़ताल का सहारा न लें ।
उल्लेखनीय है कि कोयला खदान में 100 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) एवं हाईपावर कमेटी द्वारा कोयला क्षेत्र में निजीकरण की अनुशंसा के खिलाफ केंद्रीय श्रम संगठनों ने 24 सितंबर को एक दिवसीय हड़ताल का ऐलान किया है। केंद्रीय श्रम संगठनों का कहना है कि केंद्र की सरकार ने कोयला क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और कोयले के वाणिज्यिक खनन को मंजूरी देने का फैसला लिया है, इससे कोल इंडिया पूरी तरह तबाह हो जाएगा और मजदूर सड़कों पर आ जाएंगे । कोल इंडिया का वर्तमान उत्पादन लागत औसतन 1300 रूपये प्रति टन है और ईंधन आपूर्ति करार के आधार पर उसे प्रति टन कोयले की कीमत करीब 1370 कोल इंडिया का वर्तमान उत्पादन लागत औसतन 1300 रूपये प्रति टन है और ईंधन आपूर्ति करार के आधार पर उसे प्रति टन कोयले की कीमत करीब 1370 रूपये मिलती है । इसी तरह कोल इंडिया अपने कर्मचारियों पर 38000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च करता है । विदेशी कंपनियां जब कम कीमत पर कोयला का उत्पादन करेंगी तो बाजार में बने रहने के लिए कोल इंडिया को भी उत्पादन लागत घटाना पड़ेगा जिसका सीधा असर मजदूरों के कल्याणकारी सुविधाओं पर पड़ेगा और भविष्य में कोयला मजदूरों के वेज रिवीजन पर भी इसका प्रतिकूल असर दिखेगा |
