अस्तित्व खोती बस्तर की जीवनदायिनी नदी इंद्रावती के संरक्षण और संवर्धन के लिए बस्तर की जनता ने आज से मोर्चा खोल दिया है । इंद्रावती नदी और बस्तर की नियाग्रा को बचाने के लिए लोगों ने जल सत्याग्रह का रुख अपनाया है | इंद्रवती नदी में जगदलपुर वासियों ने जल सत्याग्रह किया | ओडिसा से निकलकर छत्तीसगढ़ में आने वाली इंद्रावती नदी का जलस्तर काफी कम हो गया है | जिसके चलते नदी में पानी का प्रवाह कम हो गया है | स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि विश्व विख्यात चित्रकूट जलप्रपात पूरी तरह सूख गई है | ऐसा पहली बार हो रहा है कि चित्रकूट जलप्रपात में पानी ही नहीं है.दरअसल उड़ीसा के कालाहांडी जिले में स्थित कातीगुड़ा डैम से समझौते के तहत दी जानेवाली पानी बस्तर को नहीं मिल रही है | जदलपुर से 28 किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी के दिशा बदल जाने के चलते सारा का सारा पानी जोरा नाला के माध्यम से सबरी में जाकर मिल रही है | यही वजह है कि इंद्रावती नदी को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है | जोरा नाला में स्ट्रक्चर का निर्माण का कार्य शुरू किया गया था | ताकि पानी का प्रवाह छत्तीसगढ़ की ओर आ सके लेकिन 8 साल बीत गए स्ट्रक्चर बनकर तैयार नहीं हुआ लिहाजा अधिकतर पानी जोरा नाला में बहने लगा | स्थिति इतनी खराब हो गई है कि बस्तर में नदी किनारे पड़ने वाले 200 गांव पानी के लिए तरसने लगा है | सबसे खराब स्थिति चित्रकूट जलप्रपात की है | इंद्रावती नदी ओडिसा से शुरू होकर बस्तर पहुँचती है और 236 किलोमीटर बहती हुई गोदावरी में मिल जाती है | इस बीच नदी किनारे लगभग 200 गांव को किसानों को राहत देती है |
इंद्रावती को बचाये जाने को लेकर शहर के दंडक दल ने जल सत्याग्रह अभियान की शुरुआत की है | पहले चरण में लोगों ने आधे घंटे तक पानी में मौजूद रहकर इंद्रावती के संरक्षण के लिए नारे लगाए और जोरा नाला मुद्दे पर निर्णायक पहल की अपील की । सत्याग्रह के माध्यम से मांग की गई कि उड़ीसा सरकार पर दबाव बनाकर स्ट्रक्चर का निर्माण जल्द किया जाए | साथ ही समझौते के तहत 45% पानी छत्तीसगढ़ को दिया जाने की मांग की | आयोजन में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज, अखिल भारतीय हल्बा समाज, बस्तर चेंबर ओफ कामर्स, किसान संघ, अग्नि, पतंजलि योग समिति, बस्तर प्रकृति बचाओ समिति समेत अन्य संस्थाओं के लोग मौजूद रहे । लोगों का कहना है इंद्रावती नदी बस्तर प्राण दायनी है और इसके चलते ही बस्तर का हरिहर स्वरूप जीवित है | नदी ना होती तो बस्तरवासी पानी के लिए तरस जाते अब इसे बचाए रखने के लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े करेंगे | स्थानीय निवासियों ने सरकार से भी मांग की है कि उड़ीसा सरकार पर दबाव बनाकर बटवारा समझौता के तहत पानी मंगवाए नहीं तो स्थिति काफी गंभीर हो जाएगी |
1975 और 2003 में हुआ समझौता – पर अमल नहीं
दरअसल इंद्रावती और शबरी नदी को पानी दिए जाने को लेकर तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार के बीच जुलाई 1975 को समझौता हुआ था मगर उसका पालन नहीं हो रहा | छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जोरा नाला और इंद्रावती को पानी दिए जाने को लेकर उड़ीसा सरकार के साथ 2003 में समझौता किया गया | समझौते के तहत 45% पानी छत्तीसगढ़ को दिया जाना तय किया गया और पानी दिया भी जा रहा है | लेकिन ग्रीष्म काल में पानी कितना दिया जाएगा इसका उल्लेख नहीं था | लिहाजा कातीगुड़ा से छोड़े जा रहा पानी जोरा में ज्यादा बहने लगा जिसके चलते यह स्थिति निर्मित हो रही है | 21 साल पहले पता चला कि इंद्रावती से ज्यादा पानी जोरा नाले में जा रही है | इसको लेकर व्यापक तरीके से दबाव बनाया गया | उड़ीसा सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार ने मिलकरजोरा नाले मेंस्ट्रक्चर निर्माण कराए जाने को लेकर समझौता हुआ और निर्माण शुरू हो गया उसे अंतिम स्वरूप नहीं दिया गया और कार्य बंद हो गया | छतीसगढ़ सरकार ने निर्माण के लिये 49 करोड़ रुपय ओडिसा सरकार को दिया था |

